चर अचर की चेतना और सृष्टि का सारांश हैं,
वो राम सबके मन में बसते चिर निरंतर ही स्वांस हैं|
राम से ही है जो जन्मा, राम में ही है समाया,
राम को करूँ क्या मैं अर्पण, राम से ही है जो पाया|
राम सृस्टि का भोग वैभव राम ही उपवास हैं,
रोम पुलकित, चित्त विस्मित, राम ही सन्यास हैं|
राम सत्ता राम राजे, राम कण कण में विराजे
राम नैनो की लालसा में, राम धड़कन की धुन में बाजे|
हों जो गहरे, मन में अँधेरे, दिव्य दीपक सी आस हैं,
मन की आँखों से जो देखे राम अपने ही पास हैं|
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