राम की ही प्रेरणा से, राम के ही ज्ञान से,
राम के बारे मे लिखता हूँ बड़े सम्मान से|
राम की हैं सारी साँसे राम का सामर्थ्य है,
राम मय जीवन ना हो तो फिर ये जीवन व्यर्थ है|
राम धरती पे जो आए, प्रकृति जैसे खिल उठी,
परिजात सब पुष्प महके, पत्ती पत्ती बेल पत्री|
सरयू गंगाजल सा पावन, अवध शिवाला हो गया,
राम जिसके मन में उतरे यग्यशाला हो गया|
राम अजन्मा, राम निर्गुन, मोह, माया से परे हैं,
राम जन्मे, राम सर्वगुण, सबकी आँखों के दिए हैं|
राम सृष्टि के रचयिता, राम सबसे ही बड़े हैं,
राम बेटे, राम भाई, रिश्तों के दुख सुख सहे हैं|
मिथिला उत्सव मे राम ने जो तोड़ा धनुष था,
काल साक्षी उस घड़ी का, कर क्या सकता वो मनुष्य था|
सीता रमण को सीता वरण की शर्त का सम्मान था,
राम का संकोच था और मर्यादा का ध्यान था|
राम को राजा बनाने शुभ समय आया मगर था,
विनम्रता, उद्दंदता मे बाकी एक निश्चित समर था|
देव प्रेरित कैकेयी ने वन मे भेजा राम को,
राम आए थे जो करने उस ज़रूरी काम को|
ऱाम भटके वन मे जाके ऋषियों का आशीष लिया,
भव-राहों मे भटक रहे सब भक्तों को वैकुंठ दिया|
वन मे थे कुछ ऋषि-मुनि और वन मे थे कुछ असुर बड़े,
कुछ के प्राण मे राम-हरे और कुछ के राम ने प्राण हरे|
लंका का राजा रावण दुष्ट, क्रूर, सश्क्त था,
धन, वैभव, अहं और माया मे आसक्त था|
हर लाया वो माया को, हरि-प्रिया की छाया को,
समझ ना पाया दुर्बुद्धि वो काल की कोमल काया को|
समर बड़ा था, दो थी सेना, दोनो मे था बल, शौर्य भरा,
माया पति के हाथों से माया का आसक्त मारा|
ऱाम लौट आए अवध मे, राजा बनकर राज किया,
सुख, समृद्धि स्वर्ग सी आई, धरती का संताप मिटा|
सीता-राम विराजे मन मे, मन मंदिर सा सदा सजाया है,
श्री राम जय राम, श्री राम जय राम, मन-मन मे दोहराया है|
श्री राम जय राम, श्री राम जय राम, मन-मन मे दोहराया है|
श्री राम जय राम, श्री राम जय राम, मन-मन मे दोहराया है|
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