शांति साधारण नही शिव से जुड़ा हर तार है,
शांति
के ही गर्भ में
तो गूँजता ओंकार हैं |
विचारों
के समर में कलरव,
कोलाहल रहा,
मन के गहरे सागर
में रण रहा, हलाहल
रहा |
साँस
की दुविधा यही थी, प्राण
का जंजाल था,
अब समझ पाया मेरा
मन, वो स्वयं कलिकाल
था |
शोर
से सन्नाटे तक की जटिल
जीवन डगर,
प्यार
से हम पार करते
साथ रहते तुम अगर
|
थोड़ी
सुलझी, थोड़ी उलझी, मन की ढेरों
मिन्नतें,
भस्म
होतीं और कहतीं अब
जियो जीवन निडर |
अब नहीं माया के
मेले, ना ही हैं
सपने नवेले,
नम आँखों से भीड़ पूछे
रह गये कैसे अकेले
|
अब नही मन का
समंदर ना ही मेरा
तन है सुंदर,
ना रहा अब रूप
मेरा, ना कोई आकार
है,
मौन
मन मन से है
कहता ये ही तो
संसार है |
शांति
साधारण नही शिव से
जुड़ा हर तार है,
शांति
के ही गर्भ में
तो गूँजता ओंकार हैं |
- Amit Roop
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