तलवारों से, बलिदानो से, और शत्रु की लाशों से|
सीमाएँ सज़तीं हैं हिंद की अग्नि उगलती सांसो से|
इतिहास साक्षी है शौर्य से होती रक्षा माटी की|
अहिंसा कायर का कंगन, सीखो सीमा पार गये कैलाशों से|
रौद्र रुद्र का रूप बना कर पहनी तूने मुण्ड माला|
शस्त्र हाथ मे जटा में गंगा फिरता है तू मतवाला|
मेरे वीरों को शक्ति का अनुपम फिर उपहार मिले|
समर भयंकर बिजली सा तू महाकाल हो रखवाला|
शमशान निवासी तेरे समक्ष भय भी भय से भय खाए|
मृत्यु मिलन करवा दे उसका, जो भृकुटी भारत पे तन जाए|
राम नाम और राम धाम दोनो ही तुझको प्यारा है|
तेरे रहते क्यों ना कह दें की कश्मीर हमारा है|
सीमाएँ सज़तीं हैं हिंद की अग्नि उगलती सांसो से|
इतिहास साक्षी है शौर्य से होती रक्षा माटी की|
अहिंसा कायर का कंगन, सीखो सीमा पार गये कैलाशों से|
रौद्र रुद्र का रूप बना कर पहनी तूने मुण्ड माला|
शस्त्र हाथ मे जटा में गंगा फिरता है तू मतवाला|
मेरे वीरों को शक्ति का अनुपम फिर उपहार मिले|
समर भयंकर बिजली सा तू महाकाल हो रखवाला|
शमशान निवासी तेरे समक्ष भय भी भय से भय खाए|
मृत्यु मिलन करवा दे उसका, जो भृकुटी भारत पे तन जाए|
राम नाम और राम धाम दोनो ही तुझको प्यारा है|
तेरे रहते क्यों ना कह दें की कश्मीर हमारा है|
- Amit Roop
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