टूटे हैं सारे
बंधन, यमुना में
हुई हलचल|
घनघोर हैं घटायें,
यूँ नृत्य करते
बादल|
रात स्याह काली
आई, सोए हैं आततायी|
धरती में हैं
वो आया सुंदर
सलोना चंचल|
बिजली है जो
ये चमकी वो है आरती
की ज्योति|
पूजन करें दिशाएं,
है पाप को चुनौती|
उन्मुक्त हो रहीं
हैं जल-वृष्टि,
नभ, हवाएँ|
मानो परख रही
हो उन्हे कर्म
की कसौटी|
वैकुंठ का वो
राजा, नर रूप में है
आया|
कल्पान्त का वो
कारक, वो काल का है
साया|
वो सृष्टि का
रचयिता, वो सृष्टि
का विनाशक|
वो परमपिता परमेश्वर,
वसुदेव का दुलारा|
- Amit Roop
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