ब्रह्मांड के तुम
बीज, ऋतु अनुकूल
माता जानकी|
तुम मेघ वर्ण
श्यामल, तुम कमल नयन भगवन्|
हैं कोटि सूर्य
नभ मे तेरे तेज से
ही रोशन|
तुम सृष्टि सिर
आसीन, सत्ता जानकी|
रघुबीर तुम जगदीश
माया जानकी|
तुम काल से
भी क्रोधित, नव
पुष्प से भी पुलकित|
तुम श्रेष्ठतम जगत मे, नर देव
सब से अर्चित|
सागर असीमित तुम
जल शक्ति, चंदा
जानकी|
रघुबीर तुम जगदीश
माया जानकी|
गोविंद बन के
तुमने सबको यही
सिखाया|
है प्रीति ही
सर्वोपरि, सब मे
तू ही समाया|
तुम प्रीति के
आधीन, राधा जानकी|
रघुबीर तुम जगदीश
माया जानकी|
- Amit Roop
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