Thursday 23 February 2017

नमामी शिव, नमामी त्वम, नमामी शत जगत्गुरुम




अस्तित्व बिंदु सा मेरा अनंत अंतरिक्ष में,
पल्लव नवीन मैं तेरे कुटुम्ब कोटि वृक्ष में|
उन्मुक्त ऊर्जा तेरी मेरे जीव प्राण रक्त में,
तुम सर्वगुण आनंदमय अपार शून्य रिक्त में|

निराकार छवि तेरी पहचान ना सकूँ कभी,
है चाँद का मुकुट तेरा, जटा में गंगोत्री|
तू केशुओं को खोल दे, सुरसरि की धार मोड़ दे,
दिशाओं में चेतना जगा, यूँ नृत्य कर, मन मोह ले|

लिपटी है तन में भुजंगों की माला,
और नेत्रों में जलती चिताओं की ज्वाला|
सजता है नित्य भस्म से कालजयी रूप तेरा,
दर्श दे, दर्श दे, दर्श दे, कृपानीधे|

मन में बड़ा उल्लास है, तुझसे मिलन की आस है,
है कामना बड़ी मेरी, हृदय मेरा कैलाश है|
नमामी बीज स्रिस्टी के, नमामी तुम ही उर्वरक,
नमामी शिव, नमामी त्वम, नमामी शत जगत्गुरुम|

- Amit Roop

No comments:

Post a Comment