अस्तित्व बिंदु सा
मेरा अनंत अंतरिक्ष
में,
पल्लव नवीन मैं
तेरे कुटुम्ब कोटि
वृक्ष में|
उन्मुक्त ऊर्जा तेरी
मेरे जीव प्राण
रक्त में,
तुम सर्वगुण आनंदमय अपार
शून्य रिक्त में|
निराकार छवि तेरी
पहचान ना सकूँ कभी,
है चाँद का
मुकुट तेरा, जटा
में गंगोत्री|
तू केशुओं को
खोल दे, सुरसरि
की धार मोड़
दे,
दिशाओं में चेतना
जगा, यूँ नृत्य
कर, मन मोह ले|
लिपटी है तन
में भुजंगों की
माला,
और नेत्रों में जलती
चिताओं की ज्वाला|
सजता है नित्य
भस्म से कालजयी
रूप तेरा,
दर्श दे, दर्श
दे, दर्श दे,
कृपानीधे|
मन में बड़ा
उल्लास है, तुझसे
मिलन की आस है,
है कामना बड़ी
मेरी, हृदय मेरा
कैलाश है|
नमामी बीज स्रिस्टी
के, नमामी तुम
ही उर्वरक,
नमामी शिव, नमामी
त्वम, नमामी शत
जगत्गुरुम|
- Amit Roop
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