Sunday 6 March 2016

On Shivratri - Celebrating asceticism of my beloved Lord Shiva





श्मशान हो और शुन्य हो, दशा दिशा की मौन हो
धरा की धुरी तुम्ही, हुंकार ध्वनि ही ओम हो
आनंद से महक उठे, अग्नि सा दहक उठे
शांति भंग हो तभी जब पिनाक धारिणे उठे

शव तो अनाथ हो जो शिव तेरा न साथ हो
अंतिम प्रणय के काल में शिव तेरा ही हाथ हो
भस्म का श्रृंगार कर और भस्म से ही मांग भर
प्रचंड रक्त ललाट हो जो मृत्यु का कपाट हो

चित्त भय मुक्त कर, जड़-जीव मंत्रमुग्ध कर
त्रैलोक शिव विलीन हो, प्रसन्न हो के नृत्य कर
प्रिय तुम शिवम सदा, पवित्र सुंदरम सदा
शुन्य सम्पदा तेरी, विलास श्मशान सा

विनाश ही तो बीज है सृजन वृक्ष के लिए
सृजन के सारांश को विनाश से शुरू करें
विनाश ही तो सत्य है, विनाश ही सशक्त है
विनाश का आरम्भ तुम, त्रियम्बकं यजामहे

ओम नमः शिवाय

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